Inspirational And Motivational Stories For Kids in Hindi. जब कभी हम कोई कार्य शुरू करते हैं तो शुरुआत में उसे बड़े जोश के साथ करते हैं। लेकिन समय जैसे ही बीतता जाता है हम उस कार्य के प्रति आलसी हो जाते हैं और अपने कार्य को नहीं करते और अपना समय बर्बाद कर देते हैं। इसीलिए हमें समय-समय पर प्रेरणा और मोटिवेशन की जरूरत होती है। छोटे बच्चे भी कुछ ऐसा ही करते हैं इसीलिए हमें उन्हें समय-समय पर प्रेरणादायक कहानियां और मोटिवेशनल स्टोरी सुना-सुना कर उनका मनोबल बढ़ाना चाहिए जिससे कि वह अपने लक्ष्य के प्रति आगे बढ़ते रहे। हम चाहे तो उन्हें उनकी पढ़ाई को लेकर या खेलकूद को लेकर या जब कभी भी वे अपना मनोबल खो देते हैं तब उन्हें प्रेरणादायक या फिर मोटिवेशनल स्टोरी सुनाना चाहिए। ऐसी कहानियां सुनकर उनके अंदर का मनोबल बढ़ता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हम आपके लिए यहां कुछ प्रेरणादायक और मोटिवेशनल स्टोरीज लेकर आए हैं जिसे आप अपने बच्चों को सुना सकते हैं और उनका मनोबल बढ़ा सकते हैं।
बाज और मुर्गी
एक बरगद के पेड़ के ऊपर एक बाज का घोंसला था। घोसले में उसका अंडा रखा था। वही उस पेड़ के नीचे एक मुर्गी का घोसला था। एक दिन अचानक तेज़ हवा चलने लगी। तेज हवा चलने की वजह से ऊपर के घोसले में रखा हुआ बाज का अंडा नीचे गिर गया और वह सीधे मुर्गी के अंडे के साथ मिल गया। मुर्गी उसे अपना ही अंडा मानकर उसका ध्यान रहती थी। समय आने पर वह अंडा फूट गया जिसमें से एक बाज का बच्चा निकला। लेकिन मुर्गी उसे अपना ही बच्चा मानने लगी। वह बच्चा समय के साथ-साथ मुर्गी के तौर-तरीकों के अनुसार बड़ा हुआ। बाज का बच्चा खुद को एक मुर्गी मानता था. वह मुर्गियों के जितना ही ऊंचा उड़ता और उनके जैसे ही चला करता। एक दिन उसने ऊपर देखा कि धन्य पंछी आसमान की ऊंचाइयों तक उठ रहे थे। तब उसने अपनी मां से पूछा कि वह पंछी कौन है जो इतना ऊंचा हो रहा है?
तब उसकी मां मुर्गी ने जवाब दिया, “वह बाज है।”
“तो फिर हम इतनी ऊंचाई तक क्यों नहीं उड़ पाते?” बाज ने मुर्गी से फिर पूछा।
माँ ने जवाब दिया, “क्योंकि हम मुर्गी है।”
इस कहानी से हमें यह पता चलता है कि हमें अपने विचारों और सोच को बड़ा करते हुए काम को करना है। तभी हम ज्यादा ऊंचाइयों तक पहुंच सकते हैं। अगर वह बाज का बच्चा खुद को हौसला देखकर ऊंचा उड़ने की कोशिश करता तो वह एक दिन जरूर ऊंचाइयों तक उड़ पाता। इसीलिए हमें भी अपनी सोच को ऊंचा रखते हुए काम करते जाना है। एक ना एक दिन सफलता हमें जरूर मिलेगी।
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दो गांव की लड़ाई
दो अलग-अलग गांव के बीच एक तालाब था। जिसका पानी बहुत ही साफ़ और मीठा था। दोनों गाँव का नाम विजयनगर और संग्रामपुर था। गांव के लोग कभी-कभी उसमें से पानी पीने आया करते थे क्योंकि उनके भी गांव में उनका अपना-अपना तालाब था। एक बार गर्मी में उन दोनों गांव का तालाब सूख गया लेकिन गांव के बीच का तालाब नहीं सुखा। वह हमेशा भरा हुआ रहता था। ऐसे में दोनों गांव के लोग उस तालाब से पानी लेने आने लगे। इससे चलते एक दिन दोनों गांव के लोगों में लड़ाई हो गई और अब वे दोनों तालाब पर अपना हक जमाना चाहते थे।
ऐसे में दोनों गांव के मुखिया ने निर्णय लिया कि वह युध्द करके इसका फैसला करेंगे। ऐसे में दोनों मुखिया एक साधु के पास गए और उससे पूछा कि उन दोनों में से कौन जीतेगा? तब साधु ने कहां की विजय नगर के लोग जीत जाएंगे। यह सुनते ही संग्रामपुर के लोग उदास हो गए लेकिन फिर भी उन्होंने लड़ने का सोचा। अगले दिन दोनों के बीच लड़ाई हुई। विजय नगर के लोग ठीक से युध्द नहीं कर रहे थे क्योंकि साधु ने कहा था की वे लोग जीत जाएँगे। लेकिन संग्रामपुर के लोग पूरी ताकत लगाकर लड़ रहे थे।
लड़ते-लड़ते संग्रामपुर के लोग जीत गए। यह देखकर सारे लोग अचंभित थे कि साधु ने तो कहा था विजय नगर के लोग जीत जाएंगे। लेकिन उसके विपरीत संग्रामपुर के लोग जीत गए। तब दोनों गांव के लोग साधु के पास गए और उनसे इसका कारण पूछा। तब साधु ने बताया, “मैं नहीं जानता था की तुम दोनों में से कौन जीतने वाला है। मैंने तो बस यूं ही कह दिया था कि विजय नगर के लोग जीतेंगे। जंग में विजय नगर के लोगों ने ठीक से लड़ना भी जरूरी नहीं समझा। वे यह सोचकर बड़े आराम से जंग लड़ रहे थे कि वह जीत जाएंगे लेकिन उनका यही आत्मविश्वास उन्हें ले डुबा। इसीलिए घमंड कभी नहीं करना।”
यह कहानी हमें बताता है कि हमें कभी भी अत्यधिक आत्मा विश्वास नहीं करना चाहिए और घमंड नहीं करना चाहिए। इस कहानी से हमें यह भी पता चलता है कि हार के डर से पीठ दिखाकर भागना नहीं चाहिए। सच जानते हुए भी हमें परेशानी का डटकर सामना करना चाहिए।
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कल्पना चावला
माइकल फेल्प्स
यह कहानी है माइकल फेल्प्स की जो एक स्विमर है। उन्होंने 2008 में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सब से कह दिया कि वह अगले ओलंपिक में आठ गोल्ड मेडल जीतेंगे। यह सुनकर सारे लोगों ने उनका खूब मजाक उड़ाया और उनका अपमान भी हुआ। लेकिन उन्होंने लोगों की इन्हीं बातों से अपना हौसला बढ़ाया। वह सब सुनकर खुद को मोटिवेट करते थे और दिन में 12-12 घंटे स्विमिंग की प्रैक्टिस किया करते थे। एक दिन अचानक कार एक्सीडेंट में उनका हाथ फैक्चर हो गया। तब डॉक्टर ने कहा कि अगले ओलंपिक में वे हिस्सा नहीं ले सकते लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और वह सिर्फ पैर की सहायता से स्विमिंग की प्रैक्टिस करने लगे। फिर वही हुआ जैसा उन्होंने कहा था। वह अगले ओलंपिक में टोटल 8 गोल्ड मेडल जीतकर लोगों को दिखा दिया कि जो वह कहते हैं वह कर के दिखाते हैं। यह कहानी हम सब को बहुत मोटिवेट करती है अगर यह माइकल फ्लेप्स की कहानी आपको अच्छी लगी तो इसे शेयर करना नहीं भूलियेगा।
APJ अब्दुल कलाम
बदले में प्यार बाटो
यह कहानी एक बच्चे की है जिसे साइकिल चलाना बहुत पसंद था। वह दिनभर अपने दोस्तों के साथ साइकिल चलाया करता था लेकिन उसकी साइकिल का ब्रेक ठीक से काम नहीं करता था। एक दिन जब वह साइकिल चला रहा था तभी उसके सामने एक कार आ गई। कार को देखकर वह घबरा गया और ब्रेक ना होने की वजह से वह सीधा कार से टकरा गया। यह देखकर कार का मालिक कार से बाहर निकला और उसने देखा कि उसके कार पर खरोच के निशान आ चुके थे।
इस बात पर इस कार के मालिक ने बच्चे पर चिल्लाया नहीं बल्कि उसे एक नया साइकिल खरीद कर दिया। नया साइकिल को पाकर वह बच्चा बहुत खुश हुआ और वह रोने भी लगा। इस तरह की कहानियों को सुनकर हमें भी प्रेरणा लेनी चाहिए कि हम भी लोगों के साथ अच्छा बर्ताव करें। जब हम दूसरों के साथ अच्छा करेंगे तो बदले में हमारे साथ भी अच्छा ही होगा। इसीलिए बच्चों कभी भी दूसरों के साथ बुरा नहीं करना हमेशा दूसरों की मदद करो और उन्हें अपना बना लो।
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गरीब की उड़ान
जिम थोर्प
बच्चों हम में से ऐसे बहुत से लोग हैं जो काम बिगड़ने पर किस्मत को दोष देते हैं और सारा का सारा भार किस्मत पर डाल देते हैं। लेकिन क्या ऐसा करना सही है या गलत? यह एक ऐसी कहानी है जो इसी बात पर आधारित है। दरअसल बात एक एथलीट की है जिसका नाम जिम थोर्प था। वह एक अमेरिकन एथलीट था जो ओलंपिक की रेस में हिस्सा लेने वाला था। दौड़ शुरू होने से पहले ही उसका जूता किसी ने चुरा लिया। अब वह क्या करता? क्या वह अपने किस्मत को दोष देकर रोने लग जाता या उस दौड़ में हिस्सा लेता? जिम ने अपने किस्मत को दोष ना देकर एक डस्टबिन में पड़े हुए खराब जूते को निकालकर पहना और दौड़ में हिस्सा लिया। दौड़ में हिस्सा लेकर उसने गोल्ड मेडल भी जीता। इसीलिए बच्चों कभी भी कुछ गलत हो जाने पर किस्मत को दोष नहीं देना। किस्मत को दोष देंगे तो कभी भी आगे नहीं बढ़ पाएंगे। जब कभी भी आपके साथ बुरा हो तो इस कहानी को जरूर याद करना।
सच्चाई की अहमियत
दो मेंढक
एक बार बहुत सारे मेंढक जंगल में उछल-उछल कर जा रहे थे कि तभी दो मेंढको का पैर फिसल गया। जिसकी वजह से वे दोनों दलदल में जा गिरे। अब दलदल में गिरने की वजह से वे दोनों फस चुके थे और बाहर आना उनके लिए मुश्किल था। बाकी के सारे साथी उन दोनों से कह रहे थे कि अब उन दोनों का बचना मुस्किल है क्योंकि दलदल में जो भी फसता है वह वहां से बाहर नहीं निकलता। यह सुनते सुनते एक मेंढक उस दलदल में फंस कर मर गया। जबकि दूसरा मेंढक बार-बार कोशिश करते-करते उस दलदल से बाहर निकल आया। जैसे ही वह बाहर निकला तब बाकी के साथियों ने उससे पूछा कि क्या तुमने हमारी बात नहीं सुनी थी? जवाब में उस मेंढक ने कहा, “मुझे ठीक से सुनाई नहीं देता इसीलिए जब तुम कुछ कह रहे थे तो मुझे लगा कि तुम सब मिलकर मुझे प्रोत्साहित कर रहे हो और मेरा हौसला बढ़ा रहे हो। इसी वजह से मैं बार-बार कोशिश करता रहा और उस दलदल से बाहर निकल आया।”
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें अंत तक प्रयास करते रहना चाहिए और दूसरों के द्वारा कही हुई बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।
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पढ़ाई की आग
खरगोश और कछुए की कहानी
यह कहानी एक खरगोश और कछुए की है। खरगोश कछुए को चुनौती देता है कि वह उसके साथ दौड़ की प्रतियोगिता में भाग ले। खरगोश को अपनी रफ्तार पर घमंड होता है। कछुआ चलने में बहुत धीमा होता है लेकिन फिर भी वह दौड़ में हिस्सा लेता है। दौड़ शुरू होते ही खरगोश अपने तेज रफ्तार के साथ दौड़ने लगता है लेकिन कछुआ धीरे-धीरे चलता रहता है। खरगोश दौड़ते-दौड़ते बहुत आगे निकल जाता है। कुछ दूर तक जाने के बाद वह पीछे मुड़कर देखता है कि पीछे उसे कोई भी दिखाई नहीं देता। तब वह सोचता है कि कछुआ तो बहुत आलसी है और वह धीरे-धीरे आएगा। लेकिन मैं तो उससे बहुत ही ज्यादा तेज हूं और उससे बहुत आगे हूं। यह सोच कर वह खरगोश पास के पेड़ में जाकर सो गया और सोचा कि थोड़ी देर बाद उठकर वह दौड़ में हिस्सा ले लेगा। खरगोश वही सोता रहा लेकिन कछुआ चलता रहा। चलते-चलते खरगोश ने देखा कि खरगोश पेड़ के नीचे सो रहा था। फिर भी कछुआ आगे बढ़ता रहा। देखते ही देखते कछुआ अंतिम स्थान तक पहुंच गया और वह यह प्रतियोगिता जीत गया। कुछ देर बाद खरगोश की जब आंख खुली तो वह देखा कि आसपास उसके कोई नहीं था। उसे लगा कि कछुआ अभी भी उसके पीछे हैं। वह दौड़कर गया और अंत में जाकर उसने देखा कि कछुआ प्रतियोगिता जीत चुका था।
यह कहानी हमें सिखाती है कि जब तक हम अपने अंतिम लक्ष्य तक ना पहुंच जाए तब तक हमें नहीं रुकना चाहिए। और बच्चों हमेशा याद रहे कि हार या जीत मायने नहीं रखता बल्कि हिस्सा लेना मायने रखता है।
मेहनत बड़ी यह अक्ल
बिना हाथ का चित्रकार
हम में से ऐसे बहुत से लोग हैं जो सिर्फ यह सोचकर अपना समय बर्बाद कर देते हैं कि, उनके पास क्या नहीं है? बल्कि वह इस बात पर ध्यान नहीं देते कि उनके पास क्या मौजूद है? हमें हमेशा इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि हमारे पास क्या है और उसी की सहायता से हम बहुत कुछ कर सकते हैं। यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है। यह कहानी है एक ऐसे लड़के की जिसका नाम मॉरिस है। जिसके बचपन से ही दोनों हाथ ठीक नहीं है लेकिन फिर भी वह इन्हीं हाथों से जबरदस्त पेंटिंग बनाता है। जो अच्छे हाथ रहते हुए भी लोग नहीं बना पाते। मॉरिस ने लगभग 700 से भी ज्यादा वर्ल्ड क्लास पेंटिंग्स बनाई है और वह एक मोटिवेशनल स्पीकर भी है। वह लोगों को प्रेरणा देता है और उनका हौसला बढ़ाता है। बच्चों हमेशा इस बात का ध्यान रखना कि हमारा हौसला बुलंद होना चाहिए फिर तो हम आगे बढ़ जाएंगे।
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समय का सदुपयोग
छोटा ब्रुस ली
हम सबको अपने जीवन का एक आइडल चुनना चाहिए और उसको फॉलो करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। क्योंकि उसकी जीवन से हम सीख सकते हैं कि हमें क्या करना है। जीन बच्चों को एस्ट्रोनॉट बनना है वे नील आर्मस्ट्रांग को अपना आइडल बना सकते हैं। जीन बच्चों को बॉक्सर पसंद है वह मोहम्मद अली को अपना आइडल बना सकते हैं। उसी तरह से बाकी बच्चे भी अपनी रुचि अनुसार दूसरों को अपना आइडल बना सकते हैं। यह कहानी भी एक ऐसे बच्चे की है जो ब्रुस ली को अपना आइडल मानता है और बचपन से ही उसकी फिल्में देखकर उसके सारे स्टंट्स को सीख गया। वह बचपन से ही ब्रूस ली के फिल्मों को देखता था और उनको देखकर बहुत प्रभावित हुआ। वह बच्चा अपनी उंगलियों पर प्रेस अप करता है और अपनी मुट्ठियों पर चलता है। वह ब्रुस ली के सारे स्टंट्स को कर पाता है और उसके सारे टाइमिंग को भी मैच कर लेता है। वह बच्चा लोगों के बीच बहुत ही प्रचलित है और इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब में छाया हुआ है। उस बच्चे का नाम है Ryusei lmai जो छोटा ब्रूस ली के नाम से भी जाना जाता है। उस बच्चे ने ब्रूसली को अपना आइडल माना और उसकी तरह बनने की कोशिश की. आप भी अपना एक आइडल चुने और उन्हें फॉलो करते हुए आगे बढ़े।
वफादारी
यह कहानी एक कुत्ते की है जिसका मालिक एक प्रोफेसर था। जो जापान के एक कॉलेज में पढ़ाया करते थे। वह कुत्ता बहुत ही वफादार था। वह अपने मालिक को स्टेशन छोड़ने जाता था और उन्हें लेने भी जाया करता था। एक दिन जब वह अपने मालिक को स्टेशन छोड़ कर आया और फिर उन्हें लेने गया तो उसके मालिक वहां नहीं आए। क्योंकि प्रोफेसर जब क्लास में पढ़ा रहे थे तब हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हो गई। इसलिए वह स्टेशन नहीं जा पाए। लेकिन वह कुत्ता उनका इंतजार करता रहा वह लगभग उनका 10 साल तक उसी जगह पर उनके आने का इंतजार करता रहा और वही मर गया। उस कुत्ते का नाम हिचको था जिसका स्मारक आज भी जापान में मौजूद है। बच्चों वफादारी हर एक इंसान के अंदर होनी चाहिए और इस बेजान जानवर ने हम सब कुछ सिखा दिया की वफादारी कैसी होती है?
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स्वामी विवेकानंद और बंदर
यह कहानी स्वामी विवेकानंद की है जो एक बार थैले में कुछ खाना लेकर जंगल से गुजर रहे थे। तभी कुछ बंदर उनका पीछा कर रहे थे। शायद बंदरों को उनके पास रखा हुए खाने का सुगंध मिल चुका था। इसी वजह से बहुत सारें बंदर उनका पीछा कर रहे थे। स्वामी जी शुरुआत में उन बंदरों से डर गए और इस वजह से वे भागने लगे। जब वह भाग रहे थे तब उन्होंने सोचा कि वह कब तक इन बंदरों से भागते रहेंगे। उन्होंने अपना हौसला बढ़ाया और वही खड़े होकर बंदरों को भगाने लगे। उन्होंने उनका सामना भी किया। कुछ देर बाद बंदर वहां से भाग गए।
यह कहानी हमें बहुत कुछ सिखाती है की हमें कभी भी परेशानियों से भागना नहीं चाहिए। बल्कि उसका डटकर सामना करना चाहिए। इस कहानी में देखें तो बंदर स्वामी विवेकानंद के सामने एक समस्या बनकर आए थे। शुरुआत में वे उनसे भागने लगे थे जिससे कि बंदरों का मनोबल बढ़ गया और वह ज्यादा तेजी से उन्हें डराने लगे। लेकिन जब स्वामी विवेकानंद ने रुककर उनका डटकर सामना किया तब वह सारे बंदर वहां से भाग गए। इसी तरह से हमें भी परेशानियों का डटकर सामना करना है अगर हम परेशानियों से भागेंगे तो हमारी परेशानियां बढ़ती ही जाएगी।
बिना पूंछ की लोमड़ी
बहुत समय पहले जंगल में एक लोमड़ी रहा करती थी। वह शिकार की तलाश में यहां-वहां भटक रही थी कि तभी अचानक उसने एक आवाज सुनाई दी और फिर उसे अपनी पूछ कर दर्द महसूस हुआ। दर्द के चलते वह चीखती चिल्लाती रही, “हे भगवान यह क्या हुआ? इतना दर्द क्यों हो रहा है तुझे?” यह कहते हुए जब वह पीछे मुड़कर देखी तो उसका पूछ एक फंदे पर फंसा हुआ था जिसे किसी शिकारी ने लगाया था।
पूछ फंदे में फंसने की वजह से उसे बहुत दर्द हो रहा था। अब वह खुद को फंदे से अलग करना चाहती थी। उसके लिए वह जोर लगाकर अपनी पूंछ को खींचने लगी। उसने बहुत कोशिश की और अंत में जाकर वह फंदे से अलग हो गई। ऐसे में जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसकी पूंछ टूट चुकी थी। उसके पास बस छोटी सी पूछ बची थी और पूछ का ज्यादातर हिस्सा फंदे में फंसा हुआ था।
यह देखकर वह रोने लगी। वह सोच रही थी कि लोमड़ी अब अपने बाकी साथियों से कैसे मिलेगी? बिना पूछ के तो लोग उसका मजाक उड़ाएंगे जिससे कि उसे शर्मिंदगी महसूस होगी। यह सोचते-सोचते वह रोने लगी। कुछ देर बाद वह यह सोचने लगी कि शर्मिंदगी से कैसे बचा जाए? तभी उसके दिमाग में एक ख्याल आया और वह सीधे अपने साथियों के पास चली गई।
उसने अपने सभी साथियों को इकट्ठा किया और फिर उनसे बोली, “मेरी बहनो देखो मैंने अपनी पूछ काट दी है। ऐसा मैंने इसलिए किया है क्योंकि पूछ रखने का कोई फायदा ही नहीं था। जब हम शिकार पर जाते हैं तो यह पूछा बीच में आ जाता है। जब कुत्ते हमें पकड़ने के लिए हमारा पीछा करते हैं तब वे पूछ के सहारे हमें पकड़ सकते हैं। यह पूछ हमारे किसी काम का नहीं है इसीलिए मैं आप सबसे कहना चाहती हूं कि आप सब भी मेरी तरह अपना पूछ काट दे और इससे छुटकारा पा ले। ऐसा करने से आपको बहुत सारा फायदा होगा।”
लोमड़ी अपने बातों से अपने साथियों को बेवकुफ बनाने की कोशिश कर रही थी। लेकिन तभी एक लोमड़ी बोली, “हम अच्छे से जानते हैं कि तुमने हमें यहां इसका फायदा बताने के लिए नहीं बुलाया है। तुम्हें इस बात की शर्मिंदगी हो रही है कि तुमने अपना पूछ काट लिया है। और इसीलिए तुम चाहती हो कि हम सब भी यही करें। हम तुम्हारी तरह बेवकूफ नहीं है जाओ यहां से और बिना पूछ कर जिंदगी जियो।”
यह कहकर सारी लोमड़ी वहां से चली गई और वह लोमड़ी शर्मिंदगी के साथ जीने लगी।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हम लोगों को हमेशा बेवकूफ नहीं बना सकते। इस कहानी में लोमड़ी अपने अन्य साथियों को बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रही थी लेकिन वैसा नहीं हुआ।
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काम टालना बुरी बात
यह कहानी एक बच्चे की है जो पढ़ाई से दूर भागता था। जब कभी भी उसे पढ़ने कहा जाता तो वह अपनी पढ़ाई नहीं करता था। लेकिन समय निकालकर कुछ देर के लिए पढ़ने बैठ जाता था। जब वह पढ़ने बैठता तो वह इधर उधर की बातें सोचता और अपनी पढ़ाई को टाल देता। सोचता कि वह बाद में पढ़ लेगा। एक दिन वह बालक अपने किताब को लेकर बैठा और देखा कि उसे बहुत सारा पढ़ना है। यह सोचकर वह अपने किताब को बंद करके खेलने लगा। उसने सोचा कि वह बाद में पड़ेगा। फिर कुछ दिन बाद उसने देखा की उसकी पढ़ाई अब और भी ज्यादा हो गई थी। यह देखकर वह फिर से किताब को बंद कर दिया और सोचा कि वह बाद में पड़ेगा। ऐसा करते-करते पूरा साल निकल गया और परीक्षा का समय आ गया। जब परीक्षा चल रही थी तब उसे कुछ भी नहीं आता था। उस पर पढ़ाई का पूरा बोझ आ गया था। उसे अब एक साथ बहुत सारी पढ़ाई करनी थी। लेकिन उसके पास अब समय नहीं था।
पढ़ाई पूरा ना होने की वजह से वह बच्चा परीक्षा में फेल हो गया। फेल होने के बाद उसे बहुत बुरा लगा और उस दिन बच्चे ने निर्णय लिया कि वह अपनी पढ़ाई समय पर करेगा और कभी भी पढ़ाई को नहीं टालेगा। बच्चों हमें भी हमेशा यही करना चाहिए। समय रहते हमें पढ़ाई करनी चाहिए और अपने पढ़ाई को आगे के लिए नहीं छोड़ना चाहिए तभी हम अच्छे बन सकते हैं। Inspirational And Motivational Stories For Kids in Hindi.
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बहुत Inspirational Story है। इसमे किसी का भी जीवन बदलने की ताकत है। एक – एक शब्द में Power है, Thanks for sharing. सफलता के लिए Inspiration के साथ – साथ कुछ Practical चीजों को भी Follow करना ज़रूरी है जिनसे सफलता ज़रूर मिलती है।