फारसी व्यापारी। बादशाह अकबर का दरबार लगा हुआ था कि तभी एक सिपाही बादशाह अकबर के पास आया और उनसे कहने लगा कि बाहर एक ईरान का फारसी व्यापारी शिकायत लेकर उनके पास आया है। यह सुनकर बादशाह अकबर ने उस फारसी ईरान के व्यापारी को अंदर सभा में बुलाया।

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फारसी व्यापारी

इसके बाद बादशाह अकबर ने उस व्यापारी से कहा, “क्या बात है हमने सुना है कि आप यहां हमारे पास एक शिकायत लेकर आए हैं। क्या आपको हिंदुस्तान पसंद नहीं आया?”

” हुजूर मेरा नाम शमशेर सिंह है और मैं एक ईरान का व्यापारी हूं। हुजूर यहां बात हिंदुस्तान के पसंद आने या ना आने की नहीं है।”

” तो फिर क्या बात है जरा खुल कर बताओ हमें?” बादशाह अकबर ने उस व्यापारी से कहा।

“जिस वक्त मैं यहां अपने साथ कुछ सामान लेकर ईरान से हिंदुस्तान की ओर आ रहा था। तब मेरे पास लगभग 500 सोने की मोहर जितने बेहतरीन कारीगरी वाले सामान थे। तभी मेरे पास एक व्यापारी आया और उसने मुझसे कहा कि उसके गधे खाली है। तो वह मुझसे विनती करने लगा कि मैं अपने सामान उसके गधे पर रख दू। इसके बाद हम हिंदुस्तान पहुंचे। लेकिन जैसे ही हम हिंदुस्तान पहुंचे तो वह मुझे सामान देने से मना कर दिया। उसने मुझे डराया और धमकाया। जहाँपनाह मैं तो पूरी तरह से बर्बाद हो गया। मेरे पास अब कुछ ही समान है जिसे बेचकर में ईरान वापस जा सकता हूं। लेकिन इसके बाद में कभी भी व्यापार नहीं कर सकता। क्योंकि मेरे सारे सामान उसने लूट लिए।” उस व्यापारी ने बादशाह अकबर को सारी बात बताई।

फारसी व्यापारी

“अच्छा तो यह बात है।” बादशाह अकबर ने कहा, “क्या तुम उस व्यापारी का नाम जानते हो?”

“जी हां हुजूर मैं उस व्यापारी का नाम जानता हूं और मैं यह भी जानता हूं कि वह कहां रहता है। उसका नाम दिलावर है।” उस फारसी व्यापारी ने बादशाह अकबर को जवाब दिया।

इसके बाद बादशाह अकबर ने अपने सिपाहियों को दिलावर को बुलाने का आदेश दिया। सिपाही तुरंत ही गए और दिलावर को लेकर आए। दिलावर जैसे ही सभा में पहुंचा तो बादशाह अकबर ने उससे सवाल पूछे, “क्या तुम्हारा नाम दिलावर है?”

“जी हां जहाँपना मेरा नाम दिलावर है।”

“क्या तुम इसे पहचानते हो?” बादशाह अकबर ने पूछा।

“जी हां हुजूर मैं इसे पहचानता हूं। इसका नाम शमशेर सिंह है और यह इरान का व्यापारी है। जब मैं यहां ईरान की ओर वापस आ रहा था। तब यह मेरे पास आकर विनती करने लगा कि मैं इसे हिंदुस्तान लेकर जाऊ क्योंकि यह हिंदुस्तान का रास्ता नहीं जानता था। इसी के चलते मैं इसे अपने साथ हिंदुस्तान ले आया। लेकिन जैसे ही हम दोनों आगरा पहुंचे तो यह मुझे धमकी देने लगा कि यह मुझ पर झूठा आरोप लगाएगा और मुझे सजा दिलवा। फिर यह मेरे सामान को लूटने की कोशिश करने लगा।” दिलावर ने बादशाह अकबर से कहा।

यह सुनकर शमशेर सिंह तुरंत ही बादशाह से कहने लगा, “नहीं! नहीं! हुजूर यह पूरी तरह से झूठ कह रहा है। उससे कहा था कि वह जुए में सारे पैसे हार चुका है और कुछ पैसे के लिए इसने मुझे अपने गधे कम किराए में दिए थे।”

यह सब बातें सुनने के बाद बादशाह अकबर ने दोनों को शांत करवाया और उनसे न्याय करने का वादा किया। तब राजा अकबर ने बीरबल को बुलाया, “बीरबल मैं इन दोनों की समस्या का हल निकालने का काम तुम्हें सौंपता हूं। क्या तुम यह काम कर पाओगे? बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा।

“जी जहाँपनाह मैं यह कर सकता हूं,” बीरबल ने कहा, “हुजूर सच्चाई का पता लगाने के लिए मुझे कम से कम 2 से 3 दिन का मोहलत चाहिए।”

बीरबल की यह बात सुनकर बादशाह अकबर को 3 दिन तक का समय बीरबल को दिया और फिर इसके बाद सब अपने-अपने घर जा पहुंचे। घर पहुंचकर बीरबल ने कुछ तरकीब सोची और वह अगले दिन भेष बदलकर अपने नौकर के साथ दिलावर के पास जा पहुंचे। जब बीरबल दिलावर के पास पहुंचे तब दिलावर उन्हें नहीं पहचान पाया क्योंकि उन्होंने अपना भेष बदल लिया था। दोनों बीरबल और उसके नौकर ने खुद को एक व्यापारी बताया।

बीरबल ने दिलावर से कहा, “हम दोनों जयपुर के व्यापारी हैं और हमें ईशान के कुछ अच्छे नक्काशी और उम्दा कारीगरी वाली चीजें खरीदनी है। हमने सुना है कि आपके पास यह चीजे मिल जाती है।”

” जी हां। जी हां। आप बिल्कुल सही जगह आए हैं। आप मेरे पास से ईरान की बेहतरीन से बेहतरीन चीजें खरीद सकते हैं,” दिलावर ने उनसे कहा।

इसके बाद दिलावर ने अपने नौकर को आदेश दिया कि वह ईरान की कारीगरी वाली कपड़े वगैरह लेकर आए। नौकर ने वही किया जैसा उसके मालिक ने उससे कहा। वह गया और इरान की चीजें लेकर आया। दोनों बीरबल और उसके नौकर एक अच्छा व्यापारी बनने का नाटक करने लगे। वे बारीकी से ईरान की चीजों को परखने लगे। देखने में ऐसा लग रहा था कि वह दोनों बहुत ही पहुंचे हुए व्यापारी है।

सामान देख लेने के बाद बीरबल ने दिलावर से पूछा, “अच्छा आप इसका सही-सही दाम बताइए।”

“जी वैसे तो मैं यह ईरान की चीजें बहुत महंगे दामों में बेचता हूं लेकिन मैं आपको यह हजार सोने की मोहर के बदले दे दूंगा।”

इसके बाद तुरंत बीरबल ने कहा, “नहीं नहीं मुझे नहीं लगता कि इनके दाम हज़र मोहर जितने हैं। मैं तुम्हें इनके 500 सोने की मोहर दूंगा।”

बीरबल के ऐसा कहने के बाद बीरबल नौकर तुरंत ही कहने लगा, “नही जनाब 500 सोने के मोहर भी इसके लिए बहुत ही ज्यादा होंगे क्योंकि मुझे इन सब में बहुत सारी कमियां दिख रही है और कुछ खामियां भी है। इसीलिए हम आपको सिर्फ और सिर्फ 300 सोने की मोहर दे सकते हैं।”

दिलावर कुछ देर तक सोचने लगा और फिर उसने झट से कह दिया, “ठीक है मैं आपको यह तीन सौ सोने की मोहर में बेच दूंगा।”

ऐसा होने के बाद बीरबल ने दिलावर से कहा, “ठीक है तो कल आकर हम आपको 300 सोने की मोहर देंगे और बदले में यह सामान लेकर जाएंगे।”

3 दिन गुज़र चुके थे। 3 दिनों के बाद बीरबल बादशाह के दरबार में पहुंचा बीरबल को देख बादशाह अकबर ने उससे पूछा, “बीरबल क्या तुमने सच का पता लगा लिया?”

“जी हां जहाँपनाह मैंने सच का पता लगा लिया है और गुनहगार कोई और नहीं बल्कि दिलावर है।” बीरबल ने बादशाह अकबर को बताया।

“अरे! लेकिन मैं तो दिलावर तो अच्छा व्यक्ति समझ रहा था। लेकिन क्या तुम मुझे बता सकते हो कि तुमने ऐसा कैसे पता लगाया कि दिलावर ही गुनहगार है और वह झूठ बोल रहा है?” बादशाह अकबर के ऐसा पूछने के बाद बीरबल ने उन्हें सारी बात बताई जो उसने कल किया था। उसने बताया कि वह भेष बदलकर दिलावर के पास गया था और इसके बाद उसने सब बात खुलकर बताया। यह बातें बताने के बाद बीरबल ने बादशाह को बताया, “जहांपनाह कोई भी व्यापारी अपने सामान को बेचते समय मोल भाव करता है और उसका दाम तुरंत ही कम नहीं कर देता। लेकिन दिलावर बहुत ही कम सोने के मोहर के बदले अपने सामान को देने के लिए राजी हो गया। लेकिन अगर एक व्यापारी सच्चा होता जिसने वह समान खुद खरीदा होता। तो वह इतनी जल्दी अपने सामान को कम दाम में नहीं देता। इस बात को जानने के बाद। हमने दिलावर के नौकर को पकड़ा और उसे सजा का डर दिलिया। डरकर दिलावर का नौकर सारी बात कह दिया और वह अब आपके सामने गवाही देने को तैयार है।

यह सब बातें सुनने के बाद बादशाह अकबर ने दोनों व्यापारी को बुलवाया और उसके बाद दिलावर को 1 साल तक के कैद की सजा सुनाई। जुर्माने के तौर पर 500 सोने की मोहर शमशेर सिंह को देने को कहा। फिर इस तरह से बीरबल ने एक और समस्या हल कर दी। फारसी व्यापारी।

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