Cain and Abel Story in Hindi – एडम और ईव की कहानी में हमने देखा की शुरआत में ईश्वर ने मनुष्य को वो सारी सुख सुविधा दी जिससे मनुष्य अच्छे से जी सके। ईश्वर ने एडम को ईडन के गार्डन में रखा और बाद में ईव को भी ईश्वर ने एडम के साथ रखा। ईश्वर जो कहते है हमें उसे मानना चाहिए अगर हम ऐसा न करते तो हमारे साथ चीज़े गलत हो सकती है। ऐसा ही एडम और ईव के साथ हुआ जब उन्होंने अच्छे और बुरे के ज्ञान के पेड़ से फल खाया। ईश्वर ने उन्हें ऐसा करने से मना किया था।

अगर आपने एडम और ईव की पूरी कहानी नहीं पढ़ी तो आप उसे यहाँ पढ़ सकते है – एडम और ईव की कहानी

बाद में ईश्वर ने एडम और ईव को ईडन के गार्डन से बाहर निकल दिया। अब दोनों आम मनुष्य की तरह जीवन जीने लगे। एडम अपने लिए अनाज उगाता और जानवरो को पालता। लेकिन दोनों के दोनों इस बात से शर्मिंदा थे की उन्होंने ईश्वर के विरुद्ध जाकर काम किया। अब दोनों ईश्वर से क्षमा मांगना चाहते थे।

एडम और ईव दोनों ने ईश्वर से प्रार्थना की, “मेरें ईश्वर हमने जो भी किया हम उसके लिए शर्मिंदा है। हम आपसे विनती करते है की आप हमें माफ़ कर दें और हमें बताए की हम ऐसा क्या करें की जिससे आप हमें क्षमा करें?”

दोनों की विनती सुनकर ईश्वर ने कहा, “तुम्हें एक मेमने की बलि देनी होगी।”

केइन और एबल का जन्म

एडम और ईव ने अपने सर्वश्रेष्ट मेमने की बलि दी। जिससे की ईश्वर प्रसन्न हुए और उन्होंने एडम और ईव को वरदान में दो बच्चे दिए। दोनों बच्चों में बड़े बच्चे का नाम केइन और छोटे बच्चे का एबल था।

केइन खेती करता और सबके लिए अनाज उगाता और वही दूसरी तरफ एबल जानवरो को पालता।

एक दिन एडम ने केइन और एबल से कहा, “हमें ईश्वर का शुक्रिया अदा करना होगा। ईश्वर ने हमें बहुत सारी चीज़े दी है और इसके लिए उन्हें शुक्रिया कहना हमारा फ़र्ज़ है। ऐसा करने के लिए हमें एक मेमने की बलि देनी होगी। बलि देने से ईश्वर हमारे पापो को माफ़ करेंगे और हमारे अच्छे भविष्य के लिए आशीर्वाद देंगे। “

केइन और एबल ने उनकी बात ध्यान से सुनी और ऐसा करने के लिए एबल तुरंत राज़ी हो गया।

Cain and Abel Story in Hindi
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ईश्वर को भेंट

अगले दिन एबल अपने बेहतरीन मेमने की बलि देने निकल पड़ता है। वही केइन आकर एबल से कहता है, “एबल, ये तुम क्या कर रहे हो ? क्या तुम अपने इस सबसे बेहतरीन मेमने की बलि दें दोगे? तुम बेवकूफी कर रहे हो इस मेमने की ज़रूरत हमें ज़्यादा है ना की ईश्वर को। “

“हमें ईश्वर का शुक्रिया अदा करना ही होगा। मैं जनता हु की यह हमारा सबसे बेहतरीन मेमना है और इसकी बलि देने में मुझे भी दुःख हो रहा है लेकिन हमें यह करना ही होगा, ” एबल ने केइन से कहा।

केइन एबल को बहुत मनाने की कोशिश करता है और कहता है, “ईश्वर को अपने अच्छे और बेहतरीन चीज़ो की बलि चढाने की क्या ज़रूरत है? हम उन्हें बाकी चीज़े भी तो दें सकते है। मुझे देखों मैं एक किसान हूँ मैं जितने अनाज उगाता हूँ साल भर में उसका इस्तेमाल नहीं कर सकता इसलिए मैं बचे-कूचे अनाज को ईश्वर को भेंट में दूंगा। “

एबल ने कहा, “नहीं हमें वही चीज़ भेट में देनी होती है जो हमें सबसे प्यारी होती है ऐसा करने से ही ईश्वर हमारे भेट को स्वीकार करेंगे ओर प्रसन्न होंगे। तुम्हें भी ऐसा ही करना चाहिए। “

“नहीं मैं अपना नुकसान नहीं करना चाहता और मैं वही करूँगा जैसा मैं कह रहा हूँ। तुम जाओ और बेवकुफो की तरह इसे दें दो,” केइन ने एबल से कहा।

एबल ने केइन की बातें सुनी लेकिन उसने वही किया जो वह करना चाहता था। एबल ने अपने सबसे बेहतरीन मेमने की बलि दी और वही दूसरी तरफ केइन ने अपने बचे हुए फसल जिसका कोई मोल नहीं था उसे ईश्वर को भेंट में दिया।

ईश्वर ने एबल के भेट को स्वीकार किया लेकिन केइन के द्वारा दिए गए भेंट को ईश्वर ने स्वीकार नहीं किया। इसे देख केइन गुस्सा हो गया और अपने भाई एबल से ईर्ष्या करने लगा।

तब ईश्वर ने केइन से कहा, “तुम्हारे भाई एबल ने जो भेट दिया वो तुम्हारे भेट से मूल्यवान था और उसे वह प्रिय भी था। अब तुम्हें अपने भाई से ईर्ष्या करने की कोई जरुरत नहीं है। अगर तुम वो करोगे जो सही है तो तुम हमेशा खुश रहोगे लेकिन अगर तुम गलत काम करोगे तो तुम्हें दुखी होना पड़ेगा। तुम जो भी करोगे सोच समझ कर करना और अपने गुस्से पर काबू करो। “

केइन की ईर्ष्या

केइन ने ईश्वर की बात नहीं सुनी और वह इसका दोषी अपने भाई एबल को मानने लगा। केइन दिन भर यही सोचता की ईश्वर उससे प्यार नहीं करते और वें एबल से प्यार करते है। यह बात केइन सहन नहीं कर पा रहा था।

केइन का गुस्सा ज़्यादा हो चूका था और गुस्से में आकर उसने एक गलत फैसला ले लिया। अब एक दिन उसने सोचा की वह अपने भाई को ख़तम कर देगा। वह उसे जान से मारने के बारें में सोचने लगा। केइन ने मदद के बहाने अपने भाई एबल को अपने घर से दूर ले गया और वहाँ लेजाकर उसे मार दिया।

एबल को मारने के बाद केइन का गुस्सा शांत हुआ और वह एबल को मरा हुआ देख घबरा गया और अफ़सोस करने लगा। वह तुरंत ही वहाँ से भागने लगा।

तभी ईश्वर उसके सामने प्रकट हुए और कहा, “केइन तुमने जो भी किया वह बिलकुल गलत था। तुमने अपने परिवार के सदस्य और अपने एक लौते भाई को मार दिया। मैं उसके खून की बून्द इस ज़मीन में देख सकता हूँ। तुम्हारा भाई जो भी कर रहा था वह तुम्हारे लिए और अपने परिवार के लिए कर रहा था।”

ईश्वर की सारी बात सुन केइन की आँख खुली ओर वह ज्श्वर से माफी माँगने लगा। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी।

ईश्वर केइन से नाराज़ थे और बहुत गुस्सा भी थे। ईश्वर ने कहा, “अब से तुम्हारे इस ज़मीन में कोई फसल नहीं उगेगा। तुम्हारी यही सजा है की तुम अब खाने के लिए भटकते रहोगे। “

केइन ने कहा, “ऐसा ना करे ईश्वर मुझे माफ कर दीजिए अगर ऐसा हुआ तो लोग मुझे मार डालेंगे। “

ईश्वर ने कहा, “मैं तुम्हारे शरीर मे एक निशान दूँगा जिसको देख लोग समझ जाएंगे की यह ईश्वर द्वार दिया गया चिन्ह है । उस चिन्ह को देख कोई भी तुम्हें नही मारेगा।”

केइन ने इसके बाद अपना घर छोड़ दिया और वह ईश्वर के दिए हुए सजा के मुताबिक भटकने लगा और अब उसके साथ ईश्वर भी नहीं थे।

इस कहानी से हमें क्या सिख मिलती है ?

हमें ईश्वर ने बनाया है और उनकी कही हुई बातों को हमें मानना चाहिए। जब ईश्वर ने केइन को गुस्सा करने से मना किया तब उसने ईश्वर की बात नहीं सुनी और मन ही मन अपने भाई से ईर्ष्या और गुस्सा करने लगा। इसी वजह से केइन ने अपने भाई की हत्या की और फिर इसकी सजा केइन को भुगतनी पड़ी। वह खाने की तलाश में यहाँ-वहाँ भटकता रहा जैसा ईश्वर ने उसे सजा दिया था।

इस कहानी से हमें यह भी सिख मिलती है की गुस्सा और ईर्ष्या करना गलत है। जब हम किसी से ईर्ष्या करते है तो हम उसकी बराबरी करने की कोशिश करते है। जब हम बराबरी नहीं कर पते तो गुस्सा करते है और गुस्से में आकर गलत फैसले लेते है।

केइन को भी अपने भाई से इस बात पे ईर्ष्या होने लगी थी की ईश्वर उसे ज़्यादा प्यार करते है जोकि सही नहीं था। केइन की ईर्ष्या धीरे-धीरे गुस्से में बदल गई। इसी गुस्से की वजह से उसने एक गलत फैसला लिया। उस फैसले का अंजाम बहुत ही बुरा हुआ।

इसीलिए हमें अपने गुस्से पर काबू करना बहुत ज़रूरी है। हो सके तो गुस्सा शांत होने के बाद ही कोई फैसला लेना चाहिए।

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