पहले के समय में दो अलग-अलग सल्तनत के राजा एक दूसरों के लिए पहेलियां भेजा करते और उसे हल करने के लिए कहते। इसी के चलते ईरान की शाशक ने बादशाह अकबर के लिए भी एक पहेली भेजी। इस पहेली को किस तरह से हल किया गया यह इस कहानी में हम जान सकते हैं। तो चलिए जानते हैं Birbal aur Sher ki Kahani –

Birbal aur Sher ki Kahani

एक दिन बादशाह अकबर के दरबार में ईरान का दूत हाजिर हुआ। उस दूत को सम्मान के साथ बादशाह अकबर के दरबार में प्रस्तुत किया गया। दरबार में हाजिर होकर उसके पास आकर कैसा लग रहा और बीरबल के बारे में भी पूछा।

इसके बाद उसने ईरान के बादशाह का संदेश बादशाह अकबर को पढ़कर सुनाया, “बादशाह अकबर सलामत रहे। बादशाह अकबर को मेरा सलाम। आज मैं आपके लिए एक पहेली भेज रहा हूं। इस पहेली के बारे में मेरा दूत आपको अच्छे से समझा देगा और मैं आशा करता हूं कि आपके दरबार में कोई न कोई इसे जरूर हर करके दिखाएगा। यह कहने के बाद उस दूत ने बादशाह अकबर से आज्ञा ली, “जहाँपनाह क्या मैं आगे की पहेली को समझाना शुरू करूँ?”

बादशाह अकबर ने आदेश दिया, “जी हा आप ऐसा कर सकते हैं।”

दूत ने समझाना शुरू किया, यहां एक पिजरा है और इस पिंजरे के अंदर एक नकली का शेर है। इस शेर को आपको पिंजरे से बाहर निकालना होगा। लेकिन आपको ना हि इस पिजड़े को हाथ लगाना है और ना हि इस शेर को हाथ लगाना है। ऐसा सिर्फ तीन बार ही किया जा सकता है अगर तीन बार कोई विफल होता है तो इसका मतलब यह समझा जायेगा कि आप के दरबार में इस पहेली को हल नहीं किया गया।”

ऐसा कहने के बाद वह दूत वहीं बैठ गया। बादशाह अकबर ने पहले ही सोच लिया था कि इस पहेली को हल करने के लिए वह बीरबल से कहेंगे। बादशाह ने बीरबल से पूछा, “बीरबल मैं चाहता हूं कि तुम इस पहेली को हल करो। लेकिन पहले मुझे यह बताओ कि तुम इस पहेली को हल कर पाओगे भी या नहीं?”

Birbal aur Sher ki Kahani

“जी जहाँपनाह मैं इसको हल कर सकता हूं।” बीरबल ने बादशाह से कहा। बीरबल के यह कहने के बाद एक मंत्री खड़ा हुआ और बादशाह अकबर से कहने लगा, “जहाँपनाह हम चाहते हैं कि आप यह अवसर अन्य लोगों को भी दे। आप हर बार बीरबल को ही मौका देते हैं। इसलिए हम सब चाहते हैं कि आप दरबार में बाकी के मंत्रियों को भी इसे हल करने का मौका दें।”

इसके साथ दरबार के सारे बंदरी एक साथ कहने लगे, “जी हां जहांपना हमें भी मौका मिलना चाहिए।”

मंत्रियों कि इतनी विनती सुनकर बादशाह अकबर ने उनको आज्ञा दी और कहा, “ठीक है, आप सबकी विनती को देखकर मैनें निर्णय किया है कि मैं बाकी लोगों को भी मौका देता हूं। आप प्रयास करिए।”

इसके बाद सुखदेव जी खड़े हुए और उन्होंने बादशाह अकबर से कहा, “जहांपनाह मैं एक बहुत ही पहुंचे हुए जादूगर को पहचानता हूं। वह इस शेर को चुटकियों में पिंजरे से बाहर निकाल देगा। मैं उसे दरबार में बुलाने की आज्ञा चाहता हूं।”

“आज्ञा है” बादशाह अकबर ने आज्ञा देते हुए कहा।

दरबार में उस जादूगर को बुलाया गया। जादूगर अंदर घुसते ही सबसे पहले जादू से एक रुमाल को गुलाब में बदल दिया और उसे बादशाह अकबर को तोहफे में दिया। यह देखकर दरबार के सारे लोग चकित रह गए। फिर उसे अपना काम करने को कहा गया।

उस जादूगर ने पिंजरे को बड़े से कपड़े से ढक दिया। पिंजरे को ढकने के बाद जादुगर ने अपना जादू दिखाया। उसने हवे में अपना हाथ हिलाया फिर मंत्र पढ़ा। मंत्र पढ़ने के बाद वह शेर पिंजरे से नहीं निकला। यह देखकर जादूगर चकित रह गया।

उसने कहा कि वह दोबारा प्रयास करेगा लेकिन तभी उस दूत ने खड़े होकर कहा, “जहांपना आपने एक मौका खो दिया है। अब आप में से कोई सिर्फ दो बार प्रयास कर सकता हैं इसीलिए थोडी सावधानी बरतीये।”

यह सुनकर बादशाह अकबर ने दूसरे को मौका देने का सोचा और सभा में मौजुद लोगों से कहा, “नही! अब यह जादुगर नहीं कोई ओर प्रयास करेगा।”

तभी उनकी सभा में से एक और मंत्री खड़ा हुआ और उसने बादशाह अकबर से कहा, “जहाँपनाह मै एक बहुत ही ताकतवर और शक्तिशाली साधु को जानता हूं। वह बहुत ही ज्ञानी पुरुष है और मैं जानता हूं कि वह यह काम तुरंत कर दिखाएंगे। मैं आपसे आज्ञा चाहता हूं कि में उन्हें इस दरबार में बुला सकूं।”

“इजाज़त है।” बादशाह अकबर ने कहा।

इसके बाद दरबार में उस साधु को बुलाया गया। वे अंदर आए और उन्होंने भी अपना मंत्र पढ़ा लेकिन उनके मंत्रों से भी वह शेर पिंजरे से बाहर नहीं आया। इस तरह से तीन मौकों में से दो मौके बर्बाद हो गए।

फिर बादशाह अकबर ने बीरबल को बुलाया, “बीरबल तुम ही आओ और इस पहेली को हल करो।

बादशाह के आदेश पर पहले तो बीरबल पिजड़े के पास गया और शेर को अच्छे से देखने लगा। कुछ देर तक उसको अच्छे से देखने के बाद उसने सिपाहियों से ढेर सारी लकड़ी लाने को कहा और उसमें आग लगाने को कहा।

सिपाहियों ने वैसा ही किया जैसा बीरबल ने उनसे कहा। वे बाहर गए और ढेर सारी लकड़ियां लेकर पिछड़े के पास रख दिए। फिर उन्होंने उस पर आग लगाया। आग धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी और पिंजरे के अंदर का शेर पिघल रहा था। पिघल-पिघल कर वह शेर पूरी तरीके से पिंजरे के बाहर आ गया।

बीरबल ने ऐसा इसलिए किया था क्योंकि शेर मोम का बना हुआ था और ऐसा करके बिरबल ने फिर से साबित कर दिया कि वह सबसे अलग है। यह देखकर बादशाह अकबर बहुत ज्यादा खुश हुए और उन्होंने बीरबल को शाबाशी दी।

मोरल ऑफ़ द स्टोरी- इसीलिए कहते हैं कि किसी भी परेशानी को हल करने के लिए हमें हमेशा दिमाग का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से हम परेशानी को सही तरीके से हल कर सकते हैं। बीरबल ने भी अपने दिमाग का इस्तेमाल किया ओर मोम के शेर को पिघला कर उसे पिंजरे से बाहर निकाल दिया। Birbal aur Sher ki Kahani.

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